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पंडित जवाहरलाल नेहरु जी का इतिहास

पंडित जवाहरलाल नेहरु

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पंडित जवाहरलाल नेहरु का जन्म और मृत्यु

हमारे देश के पहले प्रधानमंत्री को आधुनिक भारत का निर्माता कहा जाता है, लेकिन आज कई लोग हैं जो कहते हैं कि इनकी ऐतिहासिक भूल के कारण चाइना के साथ।भारत की जो लगातार समस्या चली आ रही है पिछले 70 सालों से या फिर जो कश्मीर की समस्या चली आ रही है वो सब इन्हीं की देन है।

इसमें कितना सच है, कितना झूठ है ये हम जानेगे।तो जवाहर लाल नेहरू का जन्म हुआ था 14 नवंबर 1889 को और 27 मई 1964 को इनका ध्यान तो हो गया। ये भारत के सबसे पहले प्रधानमंत्री थे और आज दिन तक का सबसे लंबा कार्यकाल भी इन्हीं का रहा है। लगभग 17 साल।ये देश के प्रधानमंत्री रहे। संत 47 से जब तक इनकी मृत्यु नहीं होगी 64 तो 17 साल इनका कार्यकाल रहा।

भारत के आजादी

भारत के आजादी के आंदोलन में भी यह बहुत महत्वपूर्ण नेता थे और आज़ादी के बाद भी देश की राजनीति के सबसे अहम नेता यही थे तो लगभग 2530 साल 30 से भी ज्यादा सालों तक भारत की राजनीति में इनका बहुत अहम योगदान रहा।

इनका भारत की राजनीति में।इनकी कई उपलब्धियों के कारण इन्हें आधुनिक भारत का निर्माता कहा जाता है आगे बताऊँगा वो क्या उपलब्धियां हैं शुरुआत करते इनके बचपन से तो जवाहर लाल नेहरू का जन्म हुआ। मोतीलाल नेहरू के घर पर मोतीलाल नेहरू एक बहुत ही कामयाब वकील थे। बहुत अच्छी प्रैक्टिस चलती थी।

इनके अलावा बाद हाइकोर्ट में और वकील होने के साथ साथ ही यह एक कांग्रेस नेता भी थे तो ये कांग्रेस के नरम दल के नेता थे। मॉडरेट थे गोपाल कृष्ण गोखले।और दादाभाई नौरोजी वाले दल के तो ये लाल बाल पाल से इनकी राजनीति अलग थी। ओरिजनली मोतीलाल नेहरू और इनके जो पूर्वज हैं ये कश्मीरी पंडित थे पर ये कश्मीर से आ गए थे उत्तर प्रदेश वाले इलाके में और इनका घर एक नहर के पास हुआ करता था इसीलिए इन्हें उपाधि दे दी गई नेहरू की और वहीं इनका आगे जाकर नाम पड़ गया ।

उनके परिवार को इसलिए नेहरू कहते हैं तो जवाहरलाल नेहरू क्योंकि एक बहुत ही अमीर खानदान में पैदा हुए थे इसलिए उनकी पढ़ाई घर पर ही हुई, प्राइवेट ट्यूटर बुलाए जाते थे। एक अंग्रेज व्यक्ति उनको आकर रोज़ पढ़ाता था और बाद में उन्हें इंग्लैंड के हैरो स्कूल भेज दिया गया जोकि वहाँ पे एक बहुत ही अच्छा स्कूल है तो यह उनके जवानी का एक फ़ोटोग्राफ़ है जब वो इंग्लैंड में पढ़ते थे।

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पढ़ाई ः-

स्कूलिंग पूरी करने के बाद उन्होंने कॉलेज केम्ब्रिज से अपनी ग्रैजुएशन करि नैचरल साइनस में 1910 मेंलेकिन उसके बाद उन्होंने वकालत की पढ़ाई शुरू करी। इनर टेम्पल लंदन में यहाँ पे वकालत की पढ़ाई होती है और 1912 में ये वकील बन गए।

हवास कॉल्ड टु ठे बार यानी वकालत की प्रैक्टिस आप शुरू कर सकते हो। अगर आपको बार कॉल कर देती है तो वह कल वकील वकालत पूरी करने के बाद ये भारत लौटकर आए और भारत में ही इलाहाबाद हाइकोर्ट में ही इन्होंने अपनी प्रैक्टिस शुरू करें।लेकिन इनके पिताजी की तरह इनकी प्रैक्टिस इतनी सफल नहीं थी। कारण कई थे इनका मन वकालत में इतना नहीं लगा था।

ये देश के बारे में देश की आजादी के आंदोलन के बारे में ज्यादा सोचते विचारते थे। उसमें इनकी ज्यादा रूचि थी। इन्फैक्ट इंग्लैंड में पढ़ते समय भी ये अपने पिता जी को जब चिट्ठियां लिखते थे तब ये कहते थे की पिताजी आपनरम दल को छोड़ दीजिये आप लाल बाल पाल वाली जो राजनीति है उस तरफ जाइए, वो ज्यादा बेहतर है।

राजनीति-ः

उससे नतीजे जल्दी निकलेंगे। यानी देखिये एक बच्चा अपने पिता जी को ये बता रहा है की आप किस तरह की राजनीति कीजिये। ऐसा इनका दिमाग बचपन से ही चलने लग गया था। राजनीति में।तो प्रैक्टिस पे ज्यादा इन्होंने ध्यान नहीं दिया और धीरे धीरे यह राजनीति की तरफ से फुल टाइम आ गए और 1912 में इन्होंने कांग्रेस का सेशन भी अटेंड किया तो जैसे ही भारत आए थे बांकीपुर में कांग्रेस सेशन हुआ थावहाँ पे इन्होंने सबसे पहले कांग्रेस का सेशन अटेंड किया और उसके बाद लगातार ये कांग्रेस की गतिविधियों से जुड़े रहे।

1916 में इनकी शादी हुई कमलादेवी से और 1917 में इनकी पुत्री इंदिरा प्रियदर्शिनी का जन्म हुआ, जिन्हें हम इंदिरा गाँधी के नाम से जानते हैं और बाद में भारत की प्रधानमंत्री बनीं। आगे जाकर तो इनकी केवल एक ही बेटी थी इंदिरा प्रियदर्शिनी तो जवाहरलाल नेहरू जब नए नए आए थे, भारत एक जवान नेता की तरह उभर रहे थे तो इन्हें एक माना जाता था

नरम दल

नरम दल से विचार इनके मेल नहीं खाते थे। कांग्रेस में उस वक्त फिर से मॉडरेट का बोलबाला था लेकिन ये मोतीलाल नेहरू यानी अपने खुद के पिताजी की राजनीति का विरोध करते थे और गोपाल कृष्ण गोखले की भी राजनीति का विरोध करते थे और ये कहते थे कि इस नरम रवैये से कुछ नहीं होने वाला है। हमें नॉन कोऑपरेशन शुरू करना होगा और जीतने भी।पद पर लोग बैठे हैं।

अंग्रेजी सरकार में उन सब को अपनी नौकरियां छोड़नी होगी, अपने पद छोड़ने होंगे। ऑलरेडी पोज़िशन्स छोड़नी होंगी तो देखिए कैसे एक जवान लड़का जो केवल 2425 साल का है। आते ही भारत के सबसे वरीष्ठ नेताओं में से एक मोतीलाल नेहरू अपने खुद के पिता के खिलाफ़ वो बोल रहे है। यानी ऐसा नहीं है कि उन्हें उल्टा सीधा बोल रहे है।

बट उनकी राजनीति के अगेन्स्ट है।वो अपनी राजनीति को अलग रखना चाहते हैं या फिर अलग दिशा में ले जाना चाहते हैं कांग्रेस को कांग्रेस में क्योंकि उस वक्त नरम दल के नेता ज्यादा हावी थे तो उन्होंने।होमरूल लीग से अपने पॉलिटिकल करियर की एक तरह से शुरुआत करी तो 1916 में ऐनी बेसेंट और बाल गंगाधर तिलक ने इस होम रूल लीग की स्थापना कराई थी और इनकी डिमांड थी कि भारत को डोमिनियन स्टेटस मिले जो कि उस वक्त कांग्रेस की डिमांड नहीं थी।

कांग्रेस उस वक्त कोई डोमिनियन स्टेटस, कोई स्वराज की मांग नहीं करती थी तो उन्होंने कहा की ठीक है यहाँ पे।कम से कम डोमिनियन स्टेटस तो मांग रहे हैं तो ये से बहुत ज्यादा इन्स्पाइअर्ड थे तो उन्होंने नीबी स्टंट का जो ऑर्गेनाइजेशन था, होम रूल लीक उसे जॉइन किया और वहाँ पे सेक्रेटरी बन गया उसके और फिर रेस्ट हो गई और ये जो होम रूल लीग मूवमेंट हैं, यह खत्म सा हो गया।उसके बाद फिर से इन्होंने कांग्रेस की गतिविधियों में हिस्सा लेना शुरू किया और 1916 मेंये गांधीजी से मिले थे और उसके बाद से लगातार इनके सम्पर्क में रहें तो गांधीजी ने असहयोग आन्दोलन की शुरुआत करी थी।

असहयोग आंदोलन

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1920 में नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट और यूनाइटेड प्रोविन्स यानी आज का जो उत्तर प्रदेश है, उसमें इस मूवमेंट की कमान दी गई। जवाहर लाल नेहरू को तो गांधीजी ने उन्हें ये जिम्मा सौंपा है की आप यूनाइटेड प्रोविन्स में नॉन कॉपरेशन मोमेंट असहयोग आंदोलन की कमान संभालेलेकिन चौरी चौरा की घटना हुई।जिसमें कुछ पुलिस वालों को भीड़ ने पुलिस स्टेशन में जला दिया और उससे गांधीजी ने इस आंदोलन को स्थगित कर दिया। उसके बाद और इसकी जिम्मेदारी एक तरह से जवाहरलाल नेहरू। 

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